जैन धर्म-परिचय(jain Dharm Intro)-
जैन धर्म(Jain Dharm) एक प्राचीन भारतीय धर्म है जो अहिंसा, करुणा और जावन से आध्यात्मिक मुक्ति पर जोर देता है। जैन धर्म की उत्पत्ति 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में भगवान महावीर के समय में हुई थी। इतिहास के अनुसार, महावीर स्वामी जी को, जैन परंपरा में अंतिम और सबसे प्रमुख तीर्थंकर और आध्यात्मिक गुरु माना गया है।

जैन धर्म के अनुयायी लोग कर्म करने की अवधारणा में विश्वास रखते हैं, इनका मानना है कि प्रत्येक कर्ण क्रिया, विचार और इरादा एक प्रभाव पैदा करता है। वे सभी जीवित प्राणियों के प्रति अहिंसा का विश्वास करते हैं।वर्तमान समय में, जैन धर्म मात्र भारत तक कि ही सिमित नही रहा है बल्कि इसके अनुयायी संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में भी निवास करते है।
महावीर स्वामी कौन थे(Who was Mahaveer Swami), उनका प्रारंभिक बचपन एवं शिक्षा-
महावीर स्वामी का जन्म (Mahaveer swami birth)-
महावीर स्वामी, इन्हें भगवान महावीर के नाम से भी जाना जाता है, यह जैन धर्म के सबसे प्रशिद्ध तीर्थकारों में से एक है जिन्होंने जैन धर्म की स्थापना की थी। महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व में भारत के बिहार राज्य(birth place of Mahaveer swami) में हुआ था। इनका परिवार एक समृद्ध व सम्पन्न परिवार था।
महावीर स्वामी के माता व पिता का नाम(mahaveer swami mother and father name)–
महावीर स्वामी जी के पिता का नाम सिद्धार्थ था। उनके पिता, सिद्धार्थ, क्षत्रिय वंश के प्रमुख राजाओं में से एक थे तथा महावीर स्वामी की माता का नाम उनकी त्रिशला था जो वैशाली देश की महारानी थी ।
एक अच्छी खुशहाल परवरिश के बावजूद, महावीर स्वामी अपने जीवन में अध्यात्म की कमी महशूश की और जीवन को गहराई से जानने के लिए अपने समृद्ध परिवार को छोड दिया। उन्होंने अपने सारे धन व जीवन सुदृढ़ करने वाली वस्तुओं को त्याग दिया तथा अपने जीवन के आध्यात्म ज्ञान को प्राप्त करने के लिए आत्म-अनुशासन और तपस्या का जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया।
महावीर स्वामी के आध्यात्मिक जीवन की यात्रा-
महावीर स्वामी जी का अध्यात्म का जीवन जब शुरू हुआ, जब वे बाहरी दुनिया के जीवन से असंतुष्ट हो गए और जीवन जीने की गहराई को जानने के लिए उत्साहित हो उठे। उन्होंने अपना परिवार, संपत्ति व जीवन यापन लाभप्रद सभी साधनो को त्याग दिया और एक आध्यात्मिक जीवन कि शुरूआत कर दी, मुक्ति प्राप्ती हेतु उन्होंने, 30 वर्ष की आयु में सन्यांसी जीवन अपना लिया।
पूरे 12 वर्षों की गहन साधना के बाद, महावीर स्वामी जी ने ज्ञान प्राप्त हुआ और जैन धर्म के उपदेशक तीर्थकार बन गये। उन्होंने अपना बचा हुआ जीवन अहिंसा, दया कि भावना और आध्यात्मिक मुक्ति के लिये लोगो को प्रेरित किया।
उनके उपदेशो ने सभी जीवित प्राणियों और कर्म के सिद्धांत के प्रति अहिंसा, या अहिंसा के महत्व पर जोर दिया, जो मानता है कि प्रत्येक क्रिया, विचार और इरादा एक प्रभाव उत्पन्न करता है जो हर किसी मनुष् के भविष्य को बनाता या बिगाडता है।
महावीर स्वामी जी की आध्यात्मिक यात्रा आत्म-अनुशासन, करुणा और शांति और आध्यात्मिक को बढ़ावा देने के लिए आम जन मानव को एक मार्गदर्शक के रूप में रास्ता दिखाती है।कई वर्षों के ध्यान और आत्म-चिंतन के बाद, महावीर स्वामी ने ज्ञान प्राप्त किया और जैन समाज में तीर्थंकर या आध्यात्मिक गुरू बन गए। जिन्होनें बाद में हजारों लाखो मनुष्यों को अपने अध्यात्म की शिक्षा प्रदान की ।
महावीर स्वामी की शिक्षाओं का जैन समुदाय के लोगो पर गहरा प्रभाव छोड और उनकी शिक्षा आज भी दुनिया भर के लोगो को प्रेरित कर रही है। महावीर स्वामी जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थकार थे जिन्होंने अहिंसा, करुणा और आध्यात्मिक मुक्ति का पाठ पढाया ओर मनुष्य को उसके जीवन के महत्व के बारे बताया। महावीर स्वामी जी ने जीवीत जीवो से दया, प्रेम की भावना को बढ़ावा देने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
महावीर स्वामी की मृत्यु(mahaveer swami death)-
महावीर स्वामी की मृत्यु, 72 वर्ष की आयु मे भारत के बिहार राज्य में पावापुरी नामक स्थान पर हुई । जैन धर्म के अनुसार, उन्होंने अपनी मृत्यु के समय मोक्ष, अर्थात जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर ली थी। उनका मृत्यु जैन समुदाय के लिए एक बड़ी हानि थी, लेकिन उनकी शिक्षाएं और विरासत आज भी दुनिया भर के लोगों को जीवन के प्रति सदभावना, दया, प्रेम भावना अहिंसा का पाठ पढाती है।
महावीर स्वामी जी के विचार(mahaveer swami quotes)-
(mahaveer swami quotes) |
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“सभी दुखों की जड़ इच्छा है।” |
“अहिंसा परमो धर्म” – अहिंसा धर्म का सर्वोच्च रूप है। |
“सभी सांस लेने वाले, मौजूदा, जीवित, संवेदनशील प्राणियों को न तो मारना चाहिए, न ही हिंसा के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए, न ही दुर्व्यवहार किया जाना चाहिए, न ही सताया जाना चाहिए, न ही भगाया जाना चाहिए।” |
“सुख और दुख में, खुशी और शोक में, हमें सभी प्राणियों को अपने स्वयं के संबंध में सम्मान देना चाहिए, और इसलिए दूसरों को इस तरह की चोट पहुंचाने से बचना चाहिए जो हमारे लिए अवांछनीय प्रतीत होता है।” |
“आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने वास्तविक स्वरूप को न पहचानना है और इसे केवल स्वयं को पहचान कर ही ठीक किया जा सकता है।” ये उद्धरण महावीर स्वामी के अहिंसा, करुणा और आध्यात्मिक विकास में आत्म-प्रतिबिंब के महत्व पर जोर देते हैं। |
महावीर जयंती (Mahaveer jayanti feastival)-
महावीर जयंती जैन धर्म के संस्थापक महावीर स्वामी के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण जैन त्योहार है। जैन समुदाय का यह त्यौहार मार्च या अप्रैल के महीने में जैनियों दूारा पूरी दूनिया में बडे हर्ष के साथ मनाया जाता है।
भारत ही नहीं बल्की पूरी दुनिया में जैन धर्म को मानने वाले लोग बसते है मगर भारत में यह संख्या ज्यादा है। जैनियों द्वारा बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाने वाला यह त्यौहार भारत में भी बडीं धूम धाम से मनाया जाता है। इसमें आमतौर पर प्रार्थना, ध्यान और उपवास शामिल होता है। जैन समुदाय के लोग मंदिरों में जाते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, जिसमें वो अपने देवता यानि स्वामी महावीर जी को (मूर्ती रूप को) मिठाई चढाते है और कीर्तन करते है।
यहा त्यौहार (महावीर जयंती) पूरे जैनी समुदाय को इक्खटठा होने तथा आपस में एक दूसरे के साथ होने का एहसास कराता है। यह सभी जीवित प्राणियों के लिए करुणा और दया, प्रेम भावना को बढावा देने वाला त्यौहार माना जाता है।
जैन धर्म व महावीर स्वामी से संबन्धित प्रश्नोत्तरी-
दोस्तों यूं तो, जैन धर्म का इतिहास सीमित नहीं है, मगर हमने, निम्नलिखित प्रश्न, गतवर्षो के SSC, UPPCL, UPSSSC, Bank, CPO, CGL, CHSL, MTS,UP Police, Delhi police, DSSSB, की परीक्षाओंं से लिए है, और मैं यकीनन कह सकता हूं कि भविष्य में होने वाली अन्य प्रतियोगिताओं में भी ये क्वेश्चन आपको लाभ पहुंचाएंगे, मैं दावा नहीं कर रहा मगर यकीन से कह सकता हूं कि, एग्जाम कोई भी हो, जैन धर्म से संबंधित यही क्वेश्चन बार-बार, पूछे जा रहे हैं और पूछे जाते रहेंगे,
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✓जैन धर्म में कुल 24 तीर्थकार हुए थेे।
There were total 24 Tirthankaras in Jainism.
Rishabhdev was the first Tirthankar of Jainism.
✓ Kar Parnath was the 23rd pilgrimage of Jainism.
✓ Mahavir Swami was the 24th pilgrimage of Jainism.
Moolbhadra was after Mahavir Swami ji.
✓ Mahavir Swami was born in Kundagram.
Where did Mahavira die – Pawapuri.
✓ Name of Mahavir’s mother and father – Trishala with Siddharth.
✓ Name of Mahavir’s wife – Yashoda.
The original name of Mahavir was – Vardhaman.
In which two sects Jainism was divided – Shwetambara and Digambara.
✓ Founder of the Svetambara sect – Mulbhadra.
✓ Mahavir Swami added Brahmacharya as the fifth Mahavrata in Jainism Mahavratas propounded by Parshvinath.
✓ Who was the first disciple of Lord Mahavir – Jamali
✓ The three jewel principles of Jainism – Right perception, Right character, Right knowledge
✓ Who filed the construction of Jain temples of Dilara – Chaulukyas / Solankis
✓ Yadavad is the principle – of Jainism
Jain literature is called – Agama
✓ Interested in ‘Kalpa Sutra’ related to Jainism – Bhadrabahu
From whom did Chandragupta Maurya get the education of Jainism- From Bhadrabahu
Whose principle and philosophy is Anekantavad – of Jainism
✓ The object named Pratham Jain was detected – Pataliputra
President of the first Jain Sangeet – Mulbhadra
✓ The phenomenon of second Jain music was traced – Vallabhi
✓ Chairman of the second selection committee – Apology
In which language the compilation of Jain literature is wrapped – Prakrit and Ardhamagadhi
✓ The ruler who upheld both Buddhism and Jainism simultaneously – Magadha King Bimbasar
Jainism and Buddhism have been called atheist philosophy – Charvak
✓ The incident of attaining the knowledge of Mahavir Swami is called-
event of attainment
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