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Bhagat Singh, Indian Legend full information। भगत सिंह, भारत का शहीदे-आजम, परिचय-2023

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Legend Bhagat singh
Sardar Bhagat singh short intro
नाम- भगत सिंह (Shahid Bhagat singh)
जन्म- 28, सितम्बर 1907
पिता का नाम- किशन सिंह (गदर पार्टी के सदस्य एवं क्रांतिकारी)
माता का नाम- विद्यावती (आदर्शवादी भारतीय महिला)
जन्मस्थान- पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले का गांव- बंगा (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित)
शिक्षा- स्नातक, नेशनल कॉलेज लाहौर
गुरू एवं आदर्श- करतार सिंह सराभा ओर, वे सभी क्रांतिकारी जो भारत की आजादी के लिए लडे़
प्रिय मित्र- राजगुरू व सुखदेव
शाहदत का स्थान- लोहौर सैन्ट्रल जेल
शाहदत का दिन – 23, मार्च 1931
शाहदत के समय आयु- मात्र 23 वर्ष
आदर्श वाक्य- इंकलाब जिंदाबाद
मिशन- भारत को अंग्रेजी हकूमत से आजाद कराना,
सजा- फांसी (ऱाजगुरू व सुखदेव के साथ)
मुख्य क्रांतिकारी गतिविधिया- नौजवान भारत सभा का गठन, लाला लाजपतराय की हत्या के प्रतिषोध में जॉन सॉन्डर्स कि हत्या (लाहौर षडयंत्र केस), दिल्ली, नेंशनल असेंम्बली में बम कार्यवाही करके, आजादी की मांग करना, जेल में भूख हडताल, अंत- फांसी
Bhagat singh

भगत सिंह का जन्म (Bhagat singh birthday)

भगत सिंह (Bhagat Singh) एक भारतीय समाजवादी क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। उनका जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के एक छोटे से गांव बंगा मे हुआ था। यह वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है।

Table of Contents

भगत सिंह का जन्म पंजाब के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान में) के एक छोटे से गांव बंगा में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उनके पिता, किशन सिंह, एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जबकि उनकी माँ, विद्यावती, एक धार्मिक महिला थीं, जिन्होंने उनमें दृढ़ता और नैतिकता की एक मजबूत भावना पैदा की। भगत सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की, जो एक स्कूल शिक्षक थे।

भगत सिंह (Bhagat Singh) का परिवार 1919 में लाहौर चला गया, जहाँ उन्होंने नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। इसी दौरान उनका परिचय समाजवाद और मार्क्सवाद के विचारों से हुआ। भगत सिंह कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स और व्लादिमीर लेनिन के लेखन से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने भारतीय इतिहास पर भी बड़े पैमाने पर पढ़ा और भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के क्रांतिकारी विचारों से गहराई से प्रेरित हुए।

भगत सिंह मार्क्सवादी विचारकों के लेखन से गहरे प्रभावित थे और कम उम्र में ही एक अंग्रेजी हुकूमत से आजादी के लिए प्रितबद्ध क्रांतिकारी बन गए थे। उन्हें स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक के रूप में याद किया जाता है। भारतीय उनकी शाहदत के लिए, उन्हे शहीदे- आजम के नाम से सम्बोंधित करते है ।

भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन( Early life of Bhagat Singh)-

भगत सिंह (Bhagat Singh) का प्रारंभिक जीवन पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले कि जारनवाला तहसील (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित) से शुरू हुआ। वह पंजाबी सिख किसानों के परिवार से ताल्लुक रखते थे, यह परिवार उन सिख परिवारो से आता था जो कि अंग्रेजी हुकूमत के जोरदार विरोधी थे, इन्हीं विचारों से बालक भगत सिंह का प्रांरम्भिक जीवन प्रेरित था ।

इनका परिवार भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल था। उनके पिता, किशन सिंह, एक क्रांतिकारी थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। भगत सिं ह राजनीतिक रूप से आवेशित वातावरण में पले-बढ़े और स्वतंत्रता संग्राम में उनके परिवार की भागीदारी से प्रभावित थे।

प्रारंभिक शिक्षा ( Bhagat singh early education)-

भगत सिंह (sardar bhagat singh) ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय गांव के स्कूल में प्राप्त की। हालाँकि, उनके पिता, जो उन्हें वकील बनाना चाहते थे, उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में उनका स्थानांतन कर दिया। बाद में, उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज (shaheed bhagat singh college) में अध्ययन किया, जहाँ वे भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सक्रिय सदस्य बन गए।

अपने कॉलेज के दिनों में, भगत सिंह (Bhagat Singh) समाजवादी और अराजकतावादी विचारकों (अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ) के कार्यों से बहुत प्रभावित थे, जिसने उनकी राजनीतिक मान्यताओं और विचारधारा को आकार दिया।

भगत सिंह, मुख्य क्रांतिकारी गतिविधियाँ (Bhagat signh main Revolutionary Activities)

वह(Bhagat Singh) हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से भी जुड़े, जो एक क्रांतिकारी समूह था जिसका उद्देश्य हिंसक तरीकों से भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना था।एक शानदार छात्र होने के बावजूद, भगत सिंह ने अपनी राजनीतिक सक्रियता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कॉलेज के अंतिम वर्ष में अपनी पढ़ाई छोड़ दी ओर भारत कि आजादी को एकमात्र संकल्प मानकर क्रांतिकारी गतिविधियों मे पूर्ण रूप से लिप्त हो गये। यूं तो बचपन से भगत सिंह कि विचार धारा ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ थी, मगर यहां से भगत सिंह ने भारत कि आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ खुला बिगुल बजा दिया था।

लाहौर षडयंत्र केस में भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी

भगत सिंह (Bhagat Singh) एक क्रांतिकारी समाजवादी और ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति थे। उनके जीवन और क्रांतिकारी गतिविधियों ने भारतीयों की पीढ़ियों को प्रेरित किया है और वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक अभिन्न अंग बन गए हैं। यहाँ उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों का चरण दर चरण विस्तृत विवरण दिया गया है:

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भगत सिंह की क्रांतिकारी विचारधारा का परिचय-

भगत सिंह (sardar bhagat singh)के पिता किशन सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ गदर पार्टी आंदोलन में शामिल थे। भगत सिंह एक राजनीतिक रूप से आवेशित वातावरण में पले-बढ़े, और उनके पिता के क्रांतिकारी विचारों का उनके पालन-पोषण पर गहरा प्रभाव पड़ा।

भगत सिंह को लाहौर के एक स्कूल में भेजा गया, जहाँ उनका परिचय मार्क्सवादी और अराजकतावादी विचारधाराओं से हुआ। वह नास्तिक बन गये और इस दौरान वे क्रांतिकारी साहित्य पढ़ने लगे। क्रान्तिकारी साहित्य ने उनके जीवन पर गहरी छाप छोडी।

भगत सिंह द्वारा नौजवान भारत सभा का गठन-

भगत सिंह (sahid bhagat singh) ने नौजवान भारत सभा (एनबीएस) के गठन और गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने साथी कार्यकर्ताओं के साथ, वह 1926 में लाहौर में संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जो तब ब्रिटिश भारत का हिस्सा था, संक्षिप्त मेें ये भी कहा जा सकता है, ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नौजवान भारत सभा के तहत भगत सिंह द्वारा सर्वप्रथम खुला मोर्चा खोला गया था जो समाजवाद और साम्यवाद के आदर्शों से प्रभावित थे ।

एक युवा क्रांतिकारी समाजवादी नेता के रूप में, भगत सिंह (Bhagat Singh) ब्रिटिश उपनिवेशवाद से भारतीय स्वतंत्रता के लिए गहराई से प्रतिबद्ध थे। उनका मानना था कि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष न केवल एक राजनीतिक संघर्ष था बल्कि मजदूर वर्ग के शोषण के खिलाफ एक सामाजिक और आर्थिक संघर्ष भी था।

नौजवान भारत सभा में, भगत सिंह और अन्य सदस्यों ने सामाजिक और आर्थिक असमानता के मुद्दों और उन्हें संबोधित करने के लिए राजनीतिक कार्रवाई की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए रैलियों, जनसभाओं और शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन किया। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ विभिन्न विरोध प्रदर्शनों और प्रदर्शनों में भी भाग लिया।

एनबीएस की स्थापना ब्रिटिश उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष में युवाओं को लामबंद करने के उद्देश्य से की गई थी। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा देना और युवाओं को स्वतंत्रता के संघर्ष में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना था। संगठन ने गरीबी, बेरोजगारी और निरक्षरता जैसे सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने और सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने की भी मांग की।

भगत सिंह (Bhagat Singh) के विचारों और कार्यों का एनबीएस और व्यापक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। क्रांतिकारी समाजवाद की उनकी वकालत और विभिन्न क्रांतिकारी और प्रगतिशील समूहों के संयुक्त मोर्चे के उनके आह्वान ने नई पीढ़ी के कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने में मदद की।

लाहौर षडयंत्र केस, जिसे लाहौर षडयंत्र परीक्षण के रूप में भी जाना जाता है, एक हाई-प्रोफाइल कोर्ट केस था जो 1928 में लाहौर, ब्रिटिश भारत में हुआ था। इस मामले में भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर जैसे अन्य प्रमुख भारतीय क्रांतिकारियों के साथ शामिल थे, जिन पर जॉन सॉन्डर्स नामक एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया गया था।

यह हत्या एक अन्य क्रांतिकारी, लाला लाजपत राय की मौत के प्रतिशोध में की गई थी, जिनकी एक विरोध मार्च के दौरान ब्रिटिश पुलिस द्वारा पीटे जाने के बाद मृत्यु हो गई थी। मुकदमे के दौरान, भगत सिंह और उनके सह-अभियुक्तों ने अपने क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करने और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने के लिए तत्पर थे।

इस बीच भगत सिंह (Bhagat Singh) ने खुले रूप से कहा, “वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन वे मेरे विचारों को नहीं मार सकते।” सॉन्डर्स कि हत्या बस नमूना है, ब्रिटिस हकूमत सुन ले हम ईट का जवाब पत्थर से देंगे, जब तक अंग्रेजी हुकूमत का तख्ता पलट नहीं कर देंगे, हम रूकने वाले नहींं, आजादी लेकर रहेंगें।

भगत सिंह (Bhagat Singh)और उनके साथी कार्यकर्ता एक क्रांतिकारी समूह का हिस्सा थे जो भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने की कोशिश कर रहे थे । उनका मानना ​​था कि स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिए हिंसक साधन आवश्यक थे, और उन्होंने अपने आजादी के सपने को साकार करने के लिए कई कार्रवाइयाँ कीं।

जॉन सॉन्डर्स की हत्या इन्हीं कार्रवाइयों में से एक थी। हालाँकि भगत सिंह (Bhagat Singh) ने व्यक्तिगत रूप से हत्या को अंजाम नहीं दिया था, लेकिन उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने योजना बनाने और हमले को अंजाम देने के लिए दूसरों के साथ साजिश रची थी। उन्हें और उनके सह-अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया और हत्या और साजिश का आरोप लगाया गया।

मुकदमे के दौरान, भगत सिंह(Bhagat Singh) और उनके सहयोगियों ने अपनी राजनीतिक मान्यताओं को हवा देने और ब्रिटिश उपनिवेशवाद की आलोचना करने के लिए अदालत को एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया। अंतत: भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को दोषी पाया गया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। उनके निष्पादन ने पूरे भारत में व्यापक विरोध और आजादी के लिए आह्वान किया।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में लाहौर षडयंत्र केस एक महत्वपूर्ण क्षण था, क्योंकि इसने भगत सिंह (Bhagat Singh)और उनके साथी कार्यकर्ताओं के क्रांतिकारी समाजवादी विचारों को पूरी दुनिया के सामने ऱख दिया था। दुनिया ने देखा कि कैसे, अंग्रेजी हकुमत के आगे नया क्रातिकारी भारत खडा हो रहा है ।

नेंशनल असेंम्बली में बम फैकना (Assembly Bombing by Bhagat singh, Rajguru & Shukhdev)

असेंबली बॉम्बिंग, जिसे दिल्ली कॉन्सपिरेसी केस के रूप में भी जाना जाता है, एक ऐसी घटना थी जिसमें भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली, में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली पर बमबारी करने का प्रयास किया था।

उनका (Bhagat Singh) उद्देश्य ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार की दमनकारी नीतियों का विरोध करना और भारतीय स्वतंत्रता के कारण की ओर ध्यान आकर्षित कराना था, दूसरे शब्दो में कहें तो उनका एक ही अन्तिम उद्देश्य था- वो था आजादी, सम्पूर्ण भारत की।

भगत सिंह और उनके साथी कार्यकर्ताओं ने सत्र के दौरान विस्फोट करने के इरादे से विधानसभा कक्ष में दो बम रखे थे। सत्र शुरू होने से पहले बम विस्फोट हुए, जिससे कोई हताहत नहीं हुआ लेकिन इमारत को कुछ नुकसान हुआ। बमबारी के बाद, भगत सिंह(Bhagat Singh) और उनके साथियों ने अपनी क्रांतिकारी विचारधारा की घोषणा करते हुए और भारत के लिए तत्काल स्वतंत्रता की मांग करते हुए, अपनी मांगो को तहत छपे हुए पर्चे पूरी असेंम्बली में बिखेरे।

भगत सिंह और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर हत्या, साजिश और कई अन्य अपराधों का आरोप लगाया गया। अपने परीक्षण के दौरान, उन्होंने अपनी राजनीतिक मान्यताओं को व्यक्त करने और ब्रिटिश हकूमत का विरोध करने के लिए एक मंच के रूप में अदालत का इस्तेमाल किया।

उन्होंने मुकदमे को अपने कारण को आगे बढ़ाने के अवसर के रूप में इस्तेमाल करने के बजाय खुद का बचाव करने या दया की याचना करने से इनकार कर दिया। उन्होंने अदालत में अपना कोई पक्ष ना ऱखते हुए, सिर्फ एक ही मुद्दे को अदालत में रखा- वो था, ब्रिटिश हकूमत से आजादी ।

भगत सिंह (Bhagat Singh) और उनके साथी कार्यकर्ताओं को अंततः दोषी पाया गया और फांसी की सजा सुनाई गई। महात्मा गांधी सहित विभिन्न तिमाहियों से क्षमादान की अपील के बावजूद, सजा बरकरार रखी गयी, सजा के तहत फांसी का फरमान सुनाया गया, जिसे उन्होंने हंसते- हंसते कबूल कर लिया। भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव को फांसी कि सजा सुनाई गई है, यह खबर पूरे ब्रिटिश भारत में आग की तरह फैल गयी, इस खबर ने पूरे भारत में अंग्रेजी साशन के खिलाफ आक्रोश पैदा कर दिया ।

एक ओर पूरा भारत एकजुट नजर आ रहा था तो दूसरी ओर असेंबली बॉम्बिंग जैसी घटनाओं ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के भीतर विचारों को विभाजित कर दिया था। जबकि कुछ ने भगत सिंह (Bhagat Singh) को उनकी बहादुरी और भारतीय स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्धता के लिए एक नायक के रूप में सराहा, दूसरों ने राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में हिंसा और आतंकवाद के उपयोग की आलोचना की।

असेंबली बॉम्बिंग एक विवादस्पद घटना थी, इसके विवाद के बावजूद, भगत सिंह (Bhagat Singh) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक सम्मानित एवं गौरवमयी व्यक्तित्व बने हुए हैं और उन्हें उनकी क्रांतिकारी समाजवादी विचारधारा, उनके साहस और उनके बलिदान के लिए याद किया जाता रहा है।

भगत सिंह दूारा जेल में भूख हड़ताल ( Hunger strike in jail by Bhagat Singh, Rajguru & Shukhdev )

भगत सिंह (Bhagat Singh), अपने साथी कार्यकर्ताओं के साथ, लाहौर षडयंत्र मामले की सुनवाई के दौरान जेल में रहते हुए, क्रांतिकारियों के साथ ब्रिटिश शासन द्वारा कये जा रहे अमानवीय व कठोर व्याहवार के खिलाफ भूख हड़ताल की। भूख हड़ताल जेल में उनके साथ हो रहे कठोर व्यवहार के विरोध का एक रूप था।

भगत सिंह (Bhagat Singh) और उनके साथियों द्वारा पहली भूख हड़ताल 1929 में जेल में किताबों और समाचार पत्रों तक पहुंच से वंचित होने के बाद हुई थी। उन्होंने बेहतर स्थिति और शैक्षिक सामग्री तक पहुंच की मांग की और 63 दिनों के बाद, जेल अधिकारियों द्वारा उनकी मांगों पर सहमति जताए जाने के बाद उन्होंने भूख हड़ताल समाप्त कर दी।

1930 में, भगत सिंह और उनके साथी कार्यकर्ता राजनीतिक कैदियों के लिए बेहतर इलाज और स्थितियों की मांग को लेकर एक और भूख हड़ताल पर चले गए। यह भूख हड़ताल 116 दिनों तक चली और इसके परिणामस्वरूप भूख हड़ताल करने वालों पर गंभीर शारीरिक और मानसिक तनाव पड़ा। ब्रिटिश सरकार द्वारा कुछ रियायतें दिए जाने के बाद अंतत: हड़ताल वापस ले ली गई, लेकिन हड़तालियों की मांगों को पूरी तरह से पूरा नहीं किया गया।

भगत सिंह(Bhagat Singh) और उनके साथियों द्वारा भूख हड़ताल ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ उनके प्रतिरोध और भारतीय स्वतंत्रता के लिए उनकी प्रतिबद्धता का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर भी अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया और अन्य कार्यकर्ताओं को विरोध के समान रूपों को अपनाने के लिए प्रेरित किया।

जेल में मिले कठोर व्यवहार और उनकी मांगों को पूरा करने से सरकार के इनकार के बावजूद, भगत सिंह और उनके साथी कार्यकर्ता अपनी प्रतिबद्धता के प्रति अडिग रहे, ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जेल में लगातार हड़ताले चल रही थी, ओऱ जेल के बहार, भगत सिहं, राजगुरू व सुखदेव के प्रभाव से नये साहस के साथ, नया भारत अंग्रेजी हुकूमत से लडने को तैयार हो रहा था । उनका बलिदान और साहस सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता के संघर्ष में भारतीयों की कई पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।

भगत सिंह को फांसी (bhagat singh death)-

(23 march Bhagat singh, Raajguru & Shukhdev) देश व्यापक विरोध और क्षमादान की दलीलों के बावजूद, ब्रिटिश सरकार ने अंततः उन्हें दोषी करार दिया और मौत की सजा सुनाई गई। भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 को लाहौर जेल में फाँसी दे दी गई।ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या में उनकी संलिप्तता के लिए उन्हें उनके दो साथियों, राजगुरु और सुखदेव के साथ, ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी पर लटका दिया गया।

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Bhagat singh death, 23 March, 1931

photo recourse-rkalert.in

दूसरी ओऱ ब्रिटिश शासन के इस कदम ने ब्रिटिश शासन की नींव को हिला कर रख दिया, समस्त भारत आक्रोशित था, भगत सिंह (Bhagat Singh) की फांसी और उनके क्रांतिकारी विचारों ने युवाओं की एक पीढ़ी को अपने अधिकारों और ब्रिटिश शासन से आजादी के लिए लड़ने हेतु खडा कर दिया था, भारत का हर युवा भगत सिंह की बोली बोल रहा था।

भगत सिंह (Bhagat Singh) एक निडर और प्रतिबद्ध क्रांतिकारी थे जिन्होंने सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्त कराने की मांग की थी। उन्होंने और उनके साथियों ने 1929 में दिल्ली में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली पर बमबारी सहित कई साहसिक कार्य किए, जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया और अंततः उन्हें फांसी दे दी गई।

मात्र 23 वर्ष की कम उम्र के बावजूद, भगत सिंह (Bhagat Singh) को राजनीति और समाज की गहरी समझ थी, और उनके लेखन और भाषणों को उनकी स्पष्टता और अंतर्दृष्टि के लिए हमेशा उन्हें याद किया जायेगा।

भगत सिंह (Bhagat Singh) दमनकारी नितियों के खिलाफ प्रतिरोध और विद्रोह का प्रतीक थें, भगत सिंह की विरासत आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करती रहेगी । उनके विचार और कार्य भारत और दुनिया को अन्याय तथा दमनकारी नितियों कि खिलाफ लडनें के लिये हमेंशा हमेंशा प्रेरित करती रहेगी।

भगत सिंह उद्धरण (bhagat singh quotes)

भगत सिंह के कुछ प्रसिद्ध उद्धरण इस प्रकार हैं:-

  • “राख का कण-कण मेरे ताप से गतिमान है, मैं ऐसा पागल हूँ कि जेल में भी आज़ाद हूँ।”
  • “प्रेमी, पागल और कवि एक ही चीज के बने होते है।”
  • “क्रांति मानव जाति का एक अहस्तांतरणीय अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक अविनाशी जन्मसिद्ध अधिकार है।”
  • “कानून की पवित्रता तभी तक कायम रह सकती है जब तक कि यह लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति है।”
  • “अगर बहरों को आवाज सुननी है तो बहुत तेज आवाज करनी होगी।”
  • “निर्दयी आलोचना और स्वतंत्र सोच क्रांतिकारी सोच के दो आवश्यक गुण हैं।”
  • “प्रेमी, पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं।”
  • “मैं महत्वाकांक्षा और आशा से भरा हुआ हूं, और एक जिज्ञासा है जो मुझे सत्य को समझने की इच्छा के साथ सब कुछ करने के लिए प्रेरित करती है।”
  • “जीवन का उद्देश्य अब मन को नियंत्रित करना नहीं है, बल्कि इसे सामंजस्यपूर्ण रूप से विकसित करना है; इसके बाद मोक्ष प्राप्त करना नहीं, बल्कि यहां नीचे इसका सर्वोत्तम उपयोग करना है।”
  • “कोई भी व्यक्ति जो प्रगति के लिए खड़ा है, उसे पुराने विश्वास की हर वस्तु की आलोचना, अविश्वास और चुनौती देनी होगी।”
  • “आइए हम अपने आज का त्याग करें ताकि हमारे बच्चों का कल बेहतर हो सके।”

उपरोक्त ये उद्धरण भगत सिंह की क्रांतिकारी भावना, स्वतंत्रता और न्याय में प्रति उनके जुनून को प्रदर्शित करते है, ये दिखाता है कि वे आजाद भारत देखने के लिए कितने दृढंबद्ध थे, ।

भगत सिंह जयंती (bhagat singh jayanti)

भगत सिंह जयंती एक ऐसा दिन है जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सबसे प्रमुख भारतीय क्रांतिकारियों में से एक भगत सिंह की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह भारत में हर साल 28 सितंबर को मनाया जाता है।

भगत सिंह एक करिश्माई क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत में, ब्रिटिश उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बहुत से क्रांतिकारी कृत्यों में शामिल थे। दूसरे शब्दों में कहें तो भगत सिंह मुख्य मायनों मे, भारत के उन मुख्य क्रांतिकारियों मे से एक थें जिन्होने भारत के युवाओं के दिल में सर्वप्रथम क्रांति का बीज बोया जो बाद में ऐसा क्रांति का महान वट वृक्ष बना जिसकी शाखाओ ने ब्रिटिश शासन को जकड़कर, भारत के बाहर फैंकनें का काम किया।

भगत सिंह, उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ, 23 मार्च 1931 को लाहौर षडयंत्र मामले में उनकी संलिप्तता के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी पर लटका दिया गया था।

भगत सिंह जयंती को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के स्मरण और सम्मान के दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, उनके बलिदानों को श्रद्धांजलि देने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। युवाओं के बीच उनके विचारों और विचारधाराओं को बढ़ावा देने के लिए स्कूल और कॉलेज भी बहस और चर्चाओं का आयोजन करते हैं।

भगत सिंह का जीवन और विरासत दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करती है, खासकर भारत में, जहां उन्हें एक राष्ट्रीय नायक और स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष का प्रतीक माना जाता है, ओर हमेशा माना जाता रहेगा।

भगत सिंह फोटो ( bhagat singh real photo)

इंटरनेट पर भगत सिंह की कई तस्वीरें उपलब्ध हैं जिन्हें उनकी असली तस्वीरें माना जाता है। हालांकि, उनके समय में उपलब्ध उच्च गुणवत्ता वाले कैमरों की कमी और सीमित फोटोग्राफिक तकनीक के कारण, इनमें से कुछ तस्वीरों की प्रामाणिकता पर अक्सर बहस होती रही है।

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Bhagat singh real photo

भगत सिंह की सबसे चर्चित तस्वीरों में से एक 1928 में दिल्ली के फोटोग्राफर एस. यह तस्वीर व्यापक रूप से प्रसारित है और इसे भगत सिंह की सबसे प्रामाणिक छवियों में से एक माना जाता है।

भगत सिंह की एक और तस्वीर जिसे वास्तविक माना जाता है, वह 1929 में लाहौर सेंट्रल जेल में ली गई एक सामूहिक तस्वीर है, जिसमें वे अपने साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। इस तस्वीर में भगत सिंह सफेद शर्ट और काला कोट पहने नजर आ रहे हैं।

भगत सिंह की कई अन्य तस्वीरें भी ऑनलाइन उपलब्ध हैं, जिनमें चंद्रशेखर आज़ाद और बटुकेश्वर दत्त जैसे अन्य क्रांतिकारी नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें भी शामिल हैं। हम इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि ऐसे महान वीरो कि सच्ची तस्वीर हमारे पास बहुत कम उपलब्ध है, जिन्होंने आजाद भारत कि नींव को रखा था।आज जो आजाद भारत मे, हम आजादी का अमृत महोत्वसव हर वर्ष मना रहें है, ये इन्हीं वीर सपूतों की देन है, भारत का जन-जन हमेशा इनके बलिदान को नमन करता है, करता रहेगा ।

क्या भगत सिंह नास्तिक (Was Bhagat Singh an Atheist) थे? उन्हें नास्तिक क्यों कहा जाता है?

एक लेखक के तौर पर यहां मै अपने विचार व्यक्त करना चाहूंगा। उस समय क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त होंने कि वजहा से सभी समाचार पत्रों के साथ साथ उस समय कि काग्रेंस ओर अंग्रेजी शासन नें, भगत सिंह को धार्मिक रूप से एक बागी नौजवान सरदार के रूप में दर्शाया था। क्योंकि उन्होनें अपनी गिरफ्तारी के दौरान एक अदालत में अपने बयान दिये थे, जिसमे उन्होंने अपने आपको नाष्तिक (an Atheist) और समाजवादी बताया था।

बाद में, उस समय के समाचार पत्रों वायरल हुए थे।उनका मानना था कि, एकता ही भारत की आजादी का एकमात्र विकल्प है, जबकि भारत कि धार्मिक विचारधारा उसे जात-पात में बाटें हुए है, जो उन्हें अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ एकत्रित होने, ओर संगठित होने से रोक रही है।

भगत सिंह के गुरू कौन थे ? किन्हें वो अपना आदर्श मानते थे ?

यूं तो भगत सिंह, हर उस क्रांतिकारी को अपना आदर्श मानते थे, जो उस समय अंग्रेजी हुकूमत से बिना डरे, भारत कि आजादी के लिए लड रहा था। लेकिन कुछ अभिलेखिय साक्ष्यों के आधार पर, भगत सिंह क्रांन्तिकारी करतार सिंह सराभा को अपना आदर्श व अपना गुरू मानते थे, वे उनकी तस्वीर हमेशा अपने पर्श मे रखते थे।
क्रांन्तिकारी करतार सिंह सराभा पंजाब के लुधियाना जिले के रहने वाले थे। जानकारी के लिए बता दें करतार सिंह सराभा एक क्रांन्तिकारी नौजवान था, जिसकी क्रांन्तीकारी गतिविधियों से डरकर अंग्रेजी हुकुमत ने उन्हें महज 19 वर्ष कि छोटी उम्र में फांसी दे दी थी।

नोट- लेखक के तौर पर मैं कहना चाहूँगा, कि हमें ऐसे गुमनाम आजादी के दीवानो को अपने इतिहास में झांककर देखना व पढना चाहिए ताकि हम जान सके, कि कितने वीर सपूतों ने आजाद भारत कि एक झलक पाने के लिए अपने प्राण हंसते हुए बलिदान कर दिये।

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भगत सिंह के पिता का नाम (Bhagat Singh’s father’s name) क्या था ?

भगत सिंह के पिता का नाम किशन सिंह था, वो भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे। उनके पिता भी क्रांतिकारी समूहो ओर क्रांतिकारी गतिविधियो से जुडें हुए थे। पारिवारिक ओर पिता कि विचारधारा का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव था।

भगत सिंह कि माता का नाम (Bhagat Singh’s mother name) क्या था ?

भगत सिंह कि माता का नाम विद्यावती था, जो एक आदर्शवादी भारतीय महिला थी।

भगत सिंह का जन्म स्थान क्या था?

– बांगा गांव, पंजाब (अब पाकिस्तान)

भगत सिंह की जन्म तिथि क्या है?

– 28 सितंबर 1907

भगत सिंह को कब फांसी दी गयी ?

– 23 मार्च 1931

भगत सिंह को किस अंग्रेज पुलिस अधिकारी की हत्या के लिए फंसी पर सजा सुनाई गई थी?

जॉन सॉंडर्स

भगत सिंह की फांसी कहां हुई थी?

लाहौर जेल में

This Post Has 21 Comments

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